दूज का चाँद जैसे बिना मूठ का हँसिया काटने को तैयार फसल तारों की देखता हूँ आधी रात को उसे इस तरह मानो प्रतीक्षा में हूँ पूर्णिमा की जब पियूँगा दूधिया चाँदनी गेहूँ की कच्ची बालियों में भरे रस जैसे।
हिंदी समय में मुकेश कुमार की रचनाएँ